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भारतीय संस्कृति अब इतिहास है!

aajkal
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अक्सर लोग भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों की दुहाई देते पाये जाते हैं. आज के पैमाने से देखा जाय तो वह कहीं दिखाई नहीं देती. आज से पॉच सौ साल पहले तक भारतीय समाज में स्वास्थ्य, शिक्षा,आवास, आवागमन की कोई समस्या नहीं थी. स्वास्थय के लिए पहले किसी गॉव में एक वैद्य होते थे. तब वैद्य अपने आप में एक चिकित्सक के अलावा पूरा मेडिकल कालेज हुआ करता था उसका धर्म बीमार की सेवा करना और अपने हुनर को अपने शिष्यों के माध्यम से भविष्य के लिए वैद्य तैयार करना होता था.पैसा कमाना उसका ध्येय नहीं होता था.उसके शिष्य किसी पी. एम.टी. टेस्ट से नहीं चुने जाते थे.जिन लोगों के अन्दर इस तरह का सेवा भाव और अभिरुचि होती थी वह वैद्य जी का शिष्य बन सकता था, इसके लिए उसे वैद्य जी के साथ साथ ययावर जीवन जीना पड़ता था.वैद्य जी का बिस्तर, झोला, जड़ी-बूटी कूटने काटने का समान,खाने- पीने के बरतन सिर पर रख कर गॉव- गॉव घूमना कैम्प लगाना , औषधीय वनस्पतियों को पहचानना, उन्हें ढूंढ़ कर लाना,,गुरू कीआज्ञा का पालन, कडा़ अनुशासन ,इसके बाद कई वर्षों के प्रशिक्षण के बाद एक कुशल वैद्य तैयार होते थे जो मात्र नब्ज टटोलकर यह बता सकते थे कि रोगी कल क्या खाया था.चिकित्सा विज्ञान के इतने विकास ,तकनीक और मशीनों के बाद भी शायद ही ऐसा कोई चिकित्सक और मशीन इस दुनिया में हो जो ऐसा करिश्मा कर सके.तब कोई कोटा का नाम भी नहीं जानता रहा होगा जहॉ कोचिंग सेन्टरों में चिकित्सक बनाने की मंहगी दुकाने खुली हैं.मॉ- बाप किसी भी कीमत पर अपने बेटे- बेटियों को डाक्टर बनाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं.उन्हें यह भी पता करने की फुर्सत नहीं की उनके बच्चे में डाक्टर बनने की अभिरुचि और योग्यता है भी या नहीं.उन्हें तो हर हाल में डाक्टर नामक एक पैसा और समाजिक हैसियत बढा़ने वाली डाक्टर नामक मशीन चाहिए.पहले के वैद्य लोगों की फीस नहीं होती थी मरीज अपनी सामर्थ्य के अनुसार वैद्य जी को आटा, चावल, दाल,तेल,सब्जी पहंचा देता था.वैद्य जी और शिष्यों के खाने -पीने से बच जाता था वह वैद्य जी के घर परिवार को पहुंचा दिया जाता था .ऐसा भी नही कि वैद्य जी को जो अन्न नहीं दे पाये तो उसका इलाज नहीं होता था पूरे गॉव का इलाज करने के बाद ही वैद्य जी दूसरे गॉव को प्रस्थान करते थे.क्या आज यह संस्कार हमारे चिकित्सकों में हैं?अगर नहीं तो कैसी और किस. बात की भारतीय सभ्यता और संस्कृति ? यही कहनी शिक्षा की थी.आवास ईको फ्रेंडली थे.जाडा़,गर्मी,बरसात के अनुकूल ! जीवन प्रकृति का सहचर था उसका प्रतिद्वन्दीऔर शोषक नहीं.यह वैश्विक सभ्यता और संस्कृति का युग है, समय का पहिया अब इतना आगे बढ़ गया है कि भारतीय सभ्यता संस्कृति अब छाया मात्र है और अब तो यह छाया भी पीछा छुड़ाने लगी है.

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